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देहरादून: चुनाव के वक्त प्रदेश में मजबूत भू-कानून का मुद्दा खूब गूंजा, लेकिन चुनाव खत्म होते ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
त्रिवेंद्र सरकार में उत्तरप्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम में संशोधन हुए। अधिनियम की धारा 154 के अनुसार, कोई भी किसान 12.5 एकड़ यानी 260 नाली जमीन का मालिक ही हो सकता था। इससे ज्यादा भूमि पर सीलिंग थी। अधिनियम की धारा 154(4)(3)(क) में बदलाव कर सीलिंग की बाध्यता समाप्त कर दी गई। किसान होना भी अनिवार्य नहीं रहा। ये प्रावधान भी किया कि पहाड़ में उद्योग लगाने के लिए भूमि खरीदने पर भूमि का स्वत: भू उपयोग बदल जाएगा। जिसका लोगों ने विरोध किया।
प्रदेश में लंबे वक्त से मजबूत भू-कानून की जरूरत महसूस की जा रही है और इस संबंध में जल्द ही कुछ बेहतर होने की उम्मीद है। उत्तराखंड के भू-कानून के परीक्षण एवं सुझाव को लेकर गठित समिति की रिपोर्ट पर शुक्रवार को अंतिम मुहर लग सकती है। इस संबंध में समिति की एक बैठक बुलाई है, जिसमें तैयार की गई सिफारिशों पर चर्चा कर उन्हें अंतिम रूप दे दिया जाएगा। समिति के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने इसकी पुष्टि की। बता दें कि त्रिवेंद्र सरकार में भू कानून में किए गए संशोधनों के विरोध के चलते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समिति का गठन किया था।
भू-कानून समिति ने जिलाधिकारियों से वर्ष 2003-04 के बाद विभिन्न प्रायोजनों के लिए आवंटित की गई भूमि का उपयोग और वर्तमान स्थिति संबंधी रिपोर्ट मांगी तो पता चला कि जिस उद्देश्य से भूमि ली गई, उसका दूसरा उपयोग कर दिया गया। कई जगह भूमि आवंटित करा ली गई, लेकिन उसे खाली छोड़ दिया। इतना ही नहीं पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धर्म विशेष के लोग जमीन खरीद रहे हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने लैंड जिहाद का मामला भी उठाया था। इन तमाम बातों को देखते हुए भू-कानून के परीक्षण एवं सुझाव को लेकर समिति गठित की गई थी। पूर्व मुख्य सचिव व भू कानून समिति के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने कहा कि समिति की बैठक शुक्रवार को बुलाई गई है। इस बैठक में समिति की सिफारिशों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंप दी जाएगी।

Author: News Aap Tak
Chief Editor News Aaptak Dehradun (Uttarakhand)