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पारंपरिक पंचक्कीओं का अस्तित्व आज विलुप्त होने की कगार पर है,

न्यूज़ आपतक देहरादून उत्तराखंड मीडिया

उत्तराखंड में आज पारंपरिक पंचक्की स्थानीय भाषा में कहे तो (घराट) शब्द से संबोधन किया जाता था लेकिन जल स्रोतों का धीरे-धीरे सूक जाने की वजह से पारंपरिक पंचक्कीओं का अस्तित्व आज विलुप्त होने की कगार पर है, एक समय हुआ करता था जब उत्तराखंड के गाड़ गधेरों पर्याप्त मात्रा में जल बहाव निरंतर करता था स्थानीय ग्रामीण अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए स्थलीय चयन कर गाड गधेरों के किनारे पंचक्की बनाया करते थे और वहां पर जाकर सभी गांव के परिवार अपने-अपने घरों से गेहूं ले जाकर आटा पिसा करते थे और अपने अपने घर में शुद्ध आटा जोकि पारंपरिक पंचक्की द्वारा पीसा जाता था उसकी रोटी बनाकर खाते थे लेकिन आधुनिक वाद और स्थानीय गाड गधेरो में जल स्रोत सूख जाने की वजह से इनका अस्तित्व आज खतरे में है

पंचक्की (घराट)

हमारे पहाड मे कम तादात में आटा पीसने के लिए घर के अंदर जंदरा (हाथ चक्की) हुआ करते थे, लेकिन बडी तादात या एक साथ ज्यादा पीसने के लिए घर से बाहर, बारह मासी बहने वाले नदी नालों के किनारे घराट या घट होते थे,कही कही अब भी मिल जाएगे। असल मे घराट दो तल के होते है ,नीचे वाले तल मे नदी से कूल के माध्यम से पानी को तेज ढलान देकर फोर्स से प्रवाहित किया जाता है। पानी जोर से पंखो से टकराता है और पंखों को घुमाता रहता है, पंखो को राड की मदद से चक्की के सम्पर्क मे इस तरह से जोड दिया जाता है कि चक्की के पाट भी घूमने लगते है,और दो पाट के बीच मे आया हुआ अनाज इच्छानुसार महीन पिसता चला जाता है। ग्राम वासी नजदीक के हों या दूर के अपनी बारी के लिए रात भर भी इन्तजार करना पडता था,

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Author: News Aap Tak

Chief Editor News Aaptak Dehradun (Uttarakhand)

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